अच्छी सेहत के राज, हमारे पुरखों को थे ज्ञात

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 प्राचीन भारतीय चिकित्सा ने सुधारी दुनिया की सेहत : वेदों, उपनिषदों और संहिताओं में बताए गए सेहत के सूत्र



अच्छी सेहत के राज, हमारे पुरखों को थे ज्ञातचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान आज भी दुनिया में अपना असर दिखा रहे हैं। आयुर्वेद और उसके विद्वान आचार्य सुश्रुत ने चेहरे से लेकर आंख तक के

ऑपरेशन की तकनीके बताई, योग ने 'वेल बीइंग' के लिए सैकड़ों आसन दिए, विभिन्न चिकित्सा ग्रंथों में ऐसी उपचार विधियों और ज्ञान का उल्लेख किया

गया जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को प्रेरणा दे रही हैं। इसी विरासत पर एक नजर डालते हुए राजस्थान पत्रिका ने तैयार किया यह विशेष पृष्ठ । यह कोशिश

है, पाठकों के साथ भारत के वैभवशाली अतीत की उपलब्धियों को फिर से याद करते हुए उन पर बात करने की। हजारों वर्ष प्राचीन हमारी संस्कृति ने कैसे

दुनिया को सेहतमंद बनाने में योगदान किया, इस पर भी चर्चा करने की। पढ़िए इन उपलब्धियों और उन्हें हासिल करने वाले विद्वानों से जुड़ी बातें।


प्राचीन भारत की स्वोज और विधियों से आधुनिक मेडिकल साइंस को मिल रही दिशा


हजारों वर्षों में विकसित हमारी चिकित्सा आज हर दिन उपयोगी


पर्सनलाइज्ड इलाज की शुरूआत


प्राचीन भारत की चिकित्सा पद्धतियां और परंपराएं हजारों वर्षों के दौरान विकसित होती रहीं। इसके स्रोत व उल्लेख

वेदों, उपनिषदों, संहिताओं और ऐतिहासिक प्रंधों में हैं। इनका वर्णन आधुनिक मेडिकल साइंस के नए सिद्धांतों और

रोगों की उपचार पद्धतियों से मेल खाता है। आधुनिक विज्ञान प्राचीन कई सिद्धांतों को अब सही मानने लगा है, जिन्हें

हमारे आचार्य और मनीधियों ने हजारों वर्ष पहले समझ लिया था और सिद्ध किया था। आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक

चिकित्सा आदि पर दुनियाभर में शोध और अध्ययन हो रहे हैं।


अश्विनी कुमार


वैदिक चिकिल्‍्सा रोगों की पहचान और इलाज की पद्धति का उल्लेख


चिकिल्‍्सा विज्ञान का सबसे पुराना उल्लेख क्रग्बेद, यजुर्वेद, सामवेद और अशर्वविद में मिलता है।


आज: क्रतेद में प्राकृतिक वस्तुओं से स्वास्थ्य लाभ के बारे में बताया गया। कहा गया, केवल मंत्र नहीं, प्रकृति के साथ रहकर

शारीरिक-मानसिक गतिविधियां करने से ही शरीर को लाभ होगा। आज दुनियाभर के वैज्ञानिक माइंडफुल मेडिटेशन और लिविंग

विद नेचर का समर्थन कर रहे हैं। नीम के एंटी-बैक्टीरियल गुण अधर्वविद में 4,030 साल पहले बताए गए थे। रॉबर्ट लार्सन ने 985

में नीम के बीज़ के अर्क का पेटेंट ले लिया।

शत संहिता में शल्प चिकिल्‍्सा को आठ भागों में बांटा गया, जिसमें

तेदन, भेदन, चीरण, वेघन, ऐसन, अहरान, विस्रावन व सिवाना का वर्णन है।

सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में शव परीक्षण से अपराधों के मामलों का निर्णय लिया जाता था।राजा के आपातकालीन उपचार के लिए दरबार में हमेशा राजवैद्य तैनात रहते थे। यही व्यवस्था आज अतिविशिष्ट व्यक्तियों के

साथ थी की जाती है।




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